Saturday, April 25, 2009
One of my favourite hindi poems
A golden cage may entice a person for some time but then there is a yearning for freedom… and a nostalgia about the bygone days when freedom was taken for granted. Here is a lovely poem by "Shivmangal Singh Suman".
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
-शिवमंगल सिंघ सुमन
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध ना गा पाऐंगे,
कनक-तीलियों से टकरा कर
पुलकित पंख टूट जाऍगे।
हम बेहता जल पीने वाले
मर जाऍगे भूखे-प्यासे,
कहीं भली हैं कटूक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से।
स्वर्ण-श्रंखला के बंधन में
अपनि गति, उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरु की फुनगी पर के झूले
ऍसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने
लाल किरण-सी चोंच खोल
चुगते तारक-अनार के दाने।
होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखो कि होड़ा-होड़ी,
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती सांसों की डोरी।
नीड़ न दो चाहे टेहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,
लेकिन पंख दिये हैं तो
आकुल उड़ान में विघ्न न डालो।
[Source : http://www.geeta-kavita.com/Default.asp]
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